Thursday, October 22, 2009

Indradhanush

One of the very first poetry that has affected me. It was in my course in Class V. I still remember it. 

नभ में उग आई लो रंग भरी रेखा एक टेढी सी
जिसे हम इन्द्रधनुष कहेते हैं !

उमड़ घुमड़ कर बादल ये बरसे हैं
महक उठी धरती और फूल पट्टी पौधे
सब सरसे हैं

जीवन में इसी तरह दुःख की घटाओं का अँधेरा है
इसके भी पीछे शायद रंगों का घेरा है

एक इसी आशा के तर्क पर
दुःख और दाह हम सहते हैं

जीवन के इस आकर्षण को इन्द्रधनुष कहेते हैं
                                     - नागार्जुन

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